पाकिस्तान सरकार ने हाल ही में एक ऐसा कदम उठाया है जो न सिर्फ सेना की भूमिका को और अधिक स्पष्ट करता है, बल्कि देश की रणनीतिक विफलताओं को ढकने की कोशिश भी करता है। Pakistan Army के प्रमुख जनरल असीम मुनीर को देश के दूसरे फील्ड मार्शल के रूप में पदोन्नत किया गया है। यह पदोन्नति ऐसे समय पर आई है जब पाकिस्तान हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर जैसी सैन्य विफलताओं से जूझ रहा है।
क्या है फील्ड मार्शल की भूमिका?
फील्ड मार्शल का पद पाकिस्तान Army में सर्वोच्च और स्थायी पद माना जाता है, जिसे एक बार दिए जाने के बाद जीवनभर के लिए मान्यता प्राप्त रहती है। यह न केवल सम्मान का प्रतीक है, बल्कि सेना और सरकार के भीतर अत्यधिक प्रभाव और नियंत्रण का संकेत भी देता है। इससे पहले, पाकिस्तान के पहले फील्ड मार्शल अयूब खान थे, जिन्होंने 1958 में सत्ता पर कब्जा करने के बाद खुद को इस पद पर नियुक्त किया था।

जनरल मुनीर की पदोन्नति क्यों विवादास्पद है?
जनरल असीम मुनीर की पदोन्नति उस समय हुई है जब Pakistan Army की हाल की रणनीतियाँ और संचालन काफी आलोचना का सामना कर रही हैं। खासतौर पर 22 अप्रैल को हुए पहल्गाम आतंकी हमले और उसके जवाब में भारत द्वारा चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान की सुरक्षा रणनीति की असफलता को उजागर कर दिया।
ऑपरेशन सिंदूर: पाकिस्तानी सेना की नाकामी?
भारत ने पहलगाम हमले के जवाब में 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च किया। इस ऑपरेशन के तहत भारत ने पाकिस्तान और पीओजेके (पाकिस्तान अधिकृत जम्मू कश्मीर) में स्थित आतंकी ठिकानों पर उच्च तकनीकी सैन्य कार्रवाई की। इसमें जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन से जुड़े करीब 100 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया गया। इसके अलावा, पाकिस्तान की हवाई सुरक्षा प्रणाली, रडार, संचार केंद्र और हवाई अड्डों को भी भारी नुकसान हुआ।
इसके बावजूद पाकिस्तान Army और नागरिक नेतृत्व इसे “ऐतिहासिक जीत” के रूप में पेश कर रहे हैं और जनरल मुनीर की पदोन्नति को इसी संदर्भ में ‘सम्मान’ के तौर पर दिखा रहे हैं।
Pakistan Army की बढ़ती राजनीतिक भूमिका
पाकिस्तान में सेना (Pakistan Army) का इतिहास हमेशा से राजनीतिक सत्ता में दखल का रहा है। चाहे वो अयूब खान हों, या परवेज मुशर्रफ — Pakistan Army ने हमेशा नागरिक प्रशासन पर अपनी पकड़ बनाए रखी है। लेकिन मुनीर की पदोन्नति इस बात को और मजबूत करती है कि पाकिस्तान में असली निर्णय शक्ति सेना के पास ही है।
यह पदोन्नति पाकिस्तान की संघीय कैबिनेट द्वारा पारित की गई थी, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने की। साथ ही राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से परामर्श भी किया गया। इससे यह स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान में सेना और सरकार के बीच की सीमाएं अब और भी धुंधली होती जा रही हैं।

फील्ड मार्शल का असली उद्देश्य क्या है?
पद सम्मान का प्रतीक जरूर है, लेकिन जनरल असीम मुनीर की यह पदोन्नति रणनीतिक रूप से एक संदेश है — न सिर्फ देश के भीतर बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी। यह एक कोशिश है Pakistan Army की असफलताओं को छुपाने की, और जनरल मुनीर की स्थिति को और अधिक स्थायी तथा प्रभावशाली बनाने की।
पाकिस्तान सरकार का आधिकारिक बयान
प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) द्वारा जारी किए गए बयान में कहा गया, “पाकिस्तान सरकार ने देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने और ऑपरेशन बन्यनम मरसूस व मरक-ए-हक जैसे अभियानों के दौरान जनरल सैयद असीम मुनीर (निशान-ए-इम्तियाज) के साहसी नेतृत्व को देखते हुए उन्हें फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत करने को मंजूरी दी है।”
साथ ही, एयर चीफ मार्शल जहर अहमद बाबर सिद्धू का कार्यकाल भी बढ़ाया गया, जिससे यह स्पष्ट है कि सिर्फ Army ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान के सभी रक्षा अंगों में सत्ता के केंद्रीकरण की प्रक्रिया चल रही है।
जनरल मुनीर का जवाब
इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR) द्वारा जारी बयान में जनरल मुनीर ने कहा, “यह एक व्यक्तिगत सम्मान नहीं है, बल्कि Pakistan Army और पूरे देश का सम्मान है।” उन्होंने यह पदोन्नति नागरिक और सैन्य शहीदों को समर्पित की, लेकिन उनके बयान में ऑपरेशन सिंदूर या उसकी रणनीतिक विफलताओं का कोई ज़िक्र नहीं किया गया।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और भारत का पक्ष
भारत ने स्पष्ट किया है कि ऑपरेशन सिंदूर एक आतंकवाद विरोधी कार्रवाई थी और यह सीमित उद्देश्य के साथ किया गया था। भारतीय अधिकारियों ने कहा कि यह कोई व्यापक युद्ध नहीं था, बल्कि आतंक के खिलाफ सटीक सैन्य कार्रवाई थी।
हालांकि Pakistan Army इसे “युद्ध” और “विजय” के रूप में प्रस्तुत कर रहा है, जो अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश की छवि सुधारने और आंतरिक असंतोष को दबाने की एक रणनीति मानी जा रही है।
निष्कर्ष: जनरल मुनीर की पदोन्नति का असली उद्देश्य
जनरल असीम मुनीर की Pakistan Army में फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नति एक सैन्य सम्मान से अधिक राजनीतिक और रणनीतिक कदम है। यह पाकिस्तान में सेना की सर्वोच्चता को और अधिक मजबूत करता है और हाल की विफलताओं से ध्यान हटाने की कोशिश भी करता है।
भारत की स्पष्ट सैन्य बढ़त, पाकिस्तान की रणनीतिक असफलता और जनसंपर्क प्रयासों के बीच यह पदोन्नति कई सवाल खड़े करती है — क्या यह वास्तव में एक ‘सम्मान’ है, या फिर एक सटीक रूप से रची गई राजनीतिक चाल?